बिल्हौर
सरकार जहां एक ओर “सर्व शिक्षा अभियान” और “शिक्षा के अधिकार” जैसे अभियानों पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं जमीनी हकीकत इन दावों को कटघरे में खड़ा कर रही है। स्वक्ष सुंदर –सुंदर स्कूल…यह स्लोगन अमूमन हर स्कूल में बाहर लिखा दिख जाता है ।स्लोगन देखकर एक उम्मीद जगती है कि स्कूल सुविधाओं और शिक्षा से परिपूर्ण होगा लेकिन कई बार ये लाइन धोखा देती है ऐसा ही एक मामला बिल्हौर ब्लॉक के झापटवाजपुरवा गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय की जर्जर हालत बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा दोनों पर सवाल खड़े कर रही है।
2004 में बना, 2014 से जर्जर — अब जान जोखिम में डाल पढ़ रहे बच्चे

झापटवाजपुरवा का यह प्राथमिक विद्यालय वर्ष 2004 में बना था, लेकिन मात्र दस साल में ही इसकी हालत इतनी खराब हो गई कि 2014 में एक कमरा पूरी तरह बंद करना पड़ा। गिरती दीवारें, टपकती छत और प्लास्टर का टूटना बच्चों की जान के लिए खतरा बन चुका है।
प्रस्ताव भेजे लेकिन कार्रवाई नहीं
प्रधानाध्यापक अनुपम कटियार के मुताबिक, विद्यालय में कुल चार कमरे हैं, जिनमें से एक बंद है और एक अन्य बेहद जर्जर स्थिति में है। कई बार उच्चाधिकारियों को मरम्मत के लिए लिखित प्रस्ताव भेजे गए, लेकिन अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं, कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
बरसात में स्कूल परिसर बनता है तालाब
मानसून के समय स्कूल परिसर में इतना जलभराव हो जाता है कि शिक्षक और प्रधानाध्यापक खुद वाइपर से पानी निकालते हैं, ताकि कक्षाएं संचालित की जा सकें। सफाईकर्मी की नियुक्ति नहीं है और न ही जल निकासी की कोई स्थायी व्यवस्था।
मध्यान्ह भोजन भी प्रभावित
स्कूल की रसोई भी जर्जर हालत में है, जिससे मिड-डे मील तैयार करना भी कठिन हो गया है। यह स्थिति बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण दोनों के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है।
शिक्षा विभाग का दावा: प्रक्रिया में है मरम्मत
खंड शिक्षा अधिकारी रवि सिंह ने कहा कि “ब्लॉक के कुछ विद्यालयों की स्थिति गंभीर है, ऐसे कमरों को बंद करा दिया गया है। मरम्मत प्रक्रिया प्रगति पर है, शीघ्र कार्रवाई की जाएगी।”
बच्चे के अभिभावक पेशकार ने बताया कि इस स्कूल पानी भरा रहता है , पानी भरने से तरह- तरह की बीमारियों भी होती है ,बच्चे बीमार पड़ते है ,बिल्डिंग भी जर्जर है । अधिकारी आए है लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ है अभी तक ।हम मजबूर है पास में और कोई स्कूल नहीं है ।
स्कूल की बच्ची पारुल में बताया कि बरसात के समय छत टपकती है । कई बार डर भी लगता है । लेकिन पास में और कोई स्कूल न होने को बजाय से इसी में पढ़ाई करते है ।