कानपुर नगर,
चौबेपुर विकास खंड की वंसठी ग्राम पंचायत में संचालित गौशाला की असलियत मंगलवार को उस समय सामने आ गई जब जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने अचानक निरीक्षण किया। निरीक्षण में जो नजारा सामने आया, उन्होंने सरकारी व्यवस्थाओं की जमीनी हकीकत को उजागर कर दिया।
गौशाला में 46 गोवंश तो मिले, लेकिन उनके रखरखाव के नाम पर खानापूर्ति का खेल ही सामने आया। डीएम ने जब भूसा, चारा, दाना-पानी और गुड़-चना-नमक जैसी मूलभूत जरूरतों से जुड़ी रसीदें और रजिस्टर मांगे, तो कोई जवाब नहीं मिला। अधिकारियों की खामोशी खुद सवालों का जवाब बन गई। कुछ गोवंश कुपोषित और दुर्बल अवस्था में मिले, जिससे साफ हो गया कि पशुओं के पोषण की जिम्मेदारी केवल कागजों तक सीमित है।

पंचायत सचिव नदारद, निरीक्षण में फैली गंदगी
गौशाला परिसर में सफाई के नाम पर गंदगी पसरी थी। न तो बुनियादी साफ-सफाई का ध्यान रखा गया था और न ही प्रशासनिक निगरानी का। निरीक्षण के दौरान पंचायत सचिव गायब मिले, जिसके लिए जिलाधिकारी ने स्पष्टीकरण मांगा है। यही नहीं, खंड विकास अधिकारी और एडीओ पंचायत की भूमिका भी संदिग्ध मानी गई है, जिनसे जवाब-तलबी की गई है।
50 रुपये प्रति गोवंश की योजना, लेकिन गायें भूखी क्यों?

सरकार द्वारा हर गोवंश के लिए प्रतिदिन 50 रुपये का बजट तय किया गया है। सवाल यह है कि यह पैसा आखिर जा कहां रहा है? जिलाधिकारी ने अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि प्रत्येक पशु को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया जाए, वरना कार्रवाई तय मानी जाए।
ईयर टैगिंग और हेल्थ रिकॉर्ड भी अधूरे
डीएम द्वारा मांगे गए ईयर टैगिंग और स्वास्थ्य परीक्षण संबंधी दस्तावेज भी मौके पर नहीं मिले। इससे यह भी साफ होता है कि न केवल खानपान की निगरानी कमजोर है, बल्कि पशु कल्याण की मूल योजनाएं भी सिर्फ फाइलों में दम तोड़ रही हैं।

जनता के पैसों से चला रहा सिस्टम, लेकिन ज़मीनी हकीकत शर्मनाक
यह मामला सिर्फ एक गौशाला की बदहाली नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े करता है। यदि डीएम की एक विज़िट से इतनी खामियाँ उजागर हो जाती हैं, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि रोजाना निगरानी न होने पर क्या स्थिति होती होगी। गौशालाओं के नाम पर धन तो खर्च होता है, लेकिन वह गायों तक पहुंचे, इसकी ज़िम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं दिखता।
निरीक्षण के दौरान उपजिलाधिकारी संजीव दीक्षित भी उपस्थित रहे।