Kanpur nagar के बिल्हौर क्षेत्र इन दिनों एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है। स्वास्थ्य विभाग की नाकामी के चलते यहां खुलेआम चल रहे अवैध अस्पतालों और क्लीनिकों ने ग्रामीणों की जिंदगी को मौत के खेल में बदल दिया है। आए दिन इन झोलाछाप डॉक्टरों की लापरवाही से किसी न किसी गरीब मरीज की जान चली जाती है। दुख की बात यह है कि ये घटनाएं लगातार सामने आने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन सिर्फ औपचारिकता निभाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है।
हाल ही में शिवराजपुर क्षेत्र के भग्गी निवादा गांव की रहने वाली रेखा गौतम की मौत ने एक बार फिर इस भयावह सच्चाई को उजागर कर दिया। रेखा को गर्भपात के लिए बिल्हौर में एक कथित महिला डॉक्टर के पास ले जाया गया। यह महिला बिना किसी मेडिकल डिग्री या लाइसेंस के वर्षों से क्लीनिक चला रही थी। गर्भपात के दौरान गंभीर लापरवाही हुई और रेखा की आंत कट गई। दर्द व संक्रमण बढ़ने पर उन्हें कानपुर ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
यह घटना कोई पहली नहीं है। इससे पहले भी अवैध अस्पतालों और झोलाछाप डॉक्टरों की वजह से कई लोग या तो मौत के मुंह में जा चुके हैं या गंभीर रूप से बीमार हो चुके हैं। सवाल यह है कि जब प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को इन क्लीनिकों की जानकारी है, तो आखिर कार्रवाई क्यों नहीं होती?

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बने निजी अस्पताल, गरीब मरीजों का शोषण
Kanpur nagar के बिल्हौर क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) अब अपने मूल उद्देश्य से भटक चुके हैं। जिन अस्पतालों को गरीब और ग्रामीण मरीजों की सेवा के लिए खोला गया था, वे आज निजी अस्पतालों की तरह संचालित हो रहे हैं।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में वर्षों से डॉक्टर तैनात नहीं हैं। ऐसे में फार्मासिस्ट और लोवर ग्रेड कर्मचारी ही इलाज चलाते हैं और इलाज के नाम पर रेट तय कर दिए गए हैं—इंजेक्शन ₹50, ग्लूकोज की बोतल ₹200। यह सब सरकारी अस्पताल की आड़ में चल रहा निजी कारोबार है।
मेडिकल स्टोरों का जाल
बिल्हौर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति तो और भी चौंकाने वाली है। अस्पताल परिसर के गेट पर पहले एक मेडिकल स्टोर था, आज यहां पाँच–छह मेडिकल खुल चुके हैं। आसपास घनी आबादी न होने के बावजूद दवा दुकानों की भरमार यह साबित करती है कि डॉक्टर और मेडिकल माफिया की मिलीभगत से मरीजों को बाहर की दवा लिखी जा रही है। जबकि सरकार का स्पष्ट आदेश है कि अस्पताल के बाहर की दवाएं न लिखी जाएं।
MR (Medical Representative) का दबदबा
बिल्हौर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में आए दिन दवा कंपनियों के मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव (MR) खुलेआम घूमते देखे जाते हैं।
ये डॉक्टरों पर महंगी दवाइयां लिखने का दबाव बनाते हैं।
सरकारी आदेश है कि “बाहर की दवाएं न लिखी जाएं”, लेकिन डॉक्टर साहब इस आदेश को मानने के लिए तैयार नहीं।
नतीजा यह होता है कि मरीज को मजबूरन बाहर की दवा खरीदनी पड़ती है, जबकि अस्पताल की डिस्पेंसरी में दवाएं मुफ्त उपलब्ध होनी चाहिए।
मौत का अड्डा बने क्लीनिक
ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे सैकड़ों अवैध क्लीनिक चल रहे हैं। इनमें से अधिकांश को ऐसे लोग चला रहे हैं जिनका चिकित्सा क्षेत्र से कोई संबंध तक नहीं है। कोई compounder रहा है, कोई नर्स रही है, कोई दवाओं की दुकान चलाता था—लेकिन आज सभी खुद को डॉक्टर कहकर ऑपरेशन तक कर रहे हैं।
इन क्लीनिकों में न तो साफ-सफाई का इंतजाम है, न ही आधुनिक उपकरण। दवाइयों की गुणवत्ता पर कोई नियंत्रण नहीं, और सबसे बड़ी बात – इन्हें चलाने वालों के पास न मेडिकल डिग्री है, न लाइसेंस। ऐसे हालात में मरीज की जिंदगी दांव पर लगाना इनके लिए रोजमर्रा का काम बन गया है।
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही
स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करे और अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाए। लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट है।
डॉक्टरों की कमी: ग्रामीण इलाकों में सरकारी अस्पतालों और उपकेंद्रों पर डॉक्टर मिलना मुश्किल है। एक-एक डॉक्टर पर कई गांवों की जिम्मेदारी होती है।
सुविधाओं का अभाव: कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में न दवाइयां उपलब्ध हैं, न जांच की व्यवस्था।
निगरानी का अभाव: स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कभी इन अवैध क्लीनिकों की जांच करने की जहमत नहीं उठाते। शिकायत होने पर भी औपचारिक छापेमारी कर थोड़े दिन मामला ठंडा कर दिया जाता है।
भ्रष्टाचार का खेल: ग्रामीणों से बात करने पर आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ झोलाछाप डॉक्टर अधिकारियों की “मिलिभगत” से ही अपना कारोबार चला रहे हैं। जब तक ऊपर से दबाव न हो, कार्रवाई नहीं होती।
क्यों पनपते हैं अवैध अस्पताल?
अवैध अस्पताल और क्लीनिक पनपने के पीछे सबसे बड़ा कारण है – ग्रामीणों की मजबूरी।
गांवों में सही इलाज की सुविधा नहीं होने से लोग पास के किसी भी “डॉक्टर” पर भरोसा कर लेते हैं।
गरीब परिवार निजी बड़े अस्पतालों का खर्च नहीं उठा सकते।
झोलाछाप डॉक्टर तुरंत इलाज का भरोसा देकर मरीजों को अपनी जाल में फंसा लेते हैं।
कई बार ग्रामीण शिक्षा की कमी के कारण असली और नकली डॉक्टर में फर्क ही नहीं कर पाते।
यही वजह है कि अवैध अस्पताल फलते-फूलते हैं और हर दिन कोई न कोई परिवार इनकी लापरवाही का शिकार हो जाता है।
प्रशासन और सरकार की जिम्मेदारी
रेखा गौतम की मौत जैसी घटनाएं सिर्फ व्यक्तिगत त्रासदी नहीं हैं, बल्कि यह प्रशासनिक विफलता का आईना हैं।
नियमित जांच क्यों नहीं होती?
अगर हर महीने ग्रामीण इलाकों में जांच अभियान चलाकर नकली डॉक्टरों और अवैध क्लीनिकों को बंद किया जाए, तो हालात काफी हद तक सुधर सकते हैं।
लाइसेंसिंग सिस्टम कड़ा क्यों नहीं?
आज कोई भी व्यक्ति दवाइयों की दुकान खोलकर इलाज करने बैठ जाता है। मेडिकल काउंसिल और स्वास्थ्य विभाग को लाइसेंसिंग सिस्टम को कड़ा करना चाहिए।
ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं को क्यों नहीं सुधारा जाता?
सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी और दवाइयों का अभाव झोलाछाप डॉक्टरों के लिए मौका बनता है। अगर गांवों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों, तो लोग मजबूरी में इन अवैध क्लीनिकों का सहारा न लें।
आम जनमानस की आवाज
- बिल्हौर और आसपास के सभी अवैध क्लीनिकों की सूची बनाई जाए।
- बिना लाइसेंस और मेडिकल डिग्री वाले सभी झोलाछाप डॉक्टरों पर तुरंत मुकदमा दर्ज किया जाए।
- ग्रामीण अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त डॉक्टर और सुविधाएं मुहैया कराई जाएं।
मौत का कारोबार कब रुकेगा?
हर मौत के बाद कुछ दिन के लिए हड़कंप मचता है, छापेमारी होती है, क्लीनिक सील कर दिया जाता है। लेकिन कुछ ही दिनों बाद मामला ठंडा पड़ जाता है और फिर वही खेल शुरू हो जाता है।
यह चुप्पी, यह लापरवाही और यह मिलीभगत आने वाले दिनों में और बड़ी त्रासदियों को जन्म दे सकती है। जब तक प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ईमानदारी से इस समस्या पर काम नहीं करेंगे, तब तक ग्रामीणों की जिंदगी इसी तरह खतरे में रहेगी।
निष्कर्ष
बिल्हौर और उसके आसपास के गांवों में चल रहे अवैध क्लीनिक और झोलाछाप डॉक्टर आज मौत का कारोबार कर रहे हैं। यह सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही नहीं, बल्कि गरीब और ग्रामीण समाज के साथ सीधा अन्याय है।
रेखा गौतम जैसी घटनाएं प्रशासन और सरकार के लिए चेतावनी हैं कि अब भी अगर कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो यह सिलसिला थमेगा नहीं। ग्रामीणों को सुरक्षित और बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देना सरकार की जिम्मेदारी है। झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ त्वरित और कठोर कार्रवाई ही इस मौत के कारोबार को रोक सकती है।
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आज के समय में मरीज ठीक होना जल्दी चाहता है जिसके लिए प्राइवेट डॉक्टरों व मेडिकल स्टोर से दवाई लेता है सरकारी डॉक्टर नहीं मरीज स्वयं मांग करता है। बाहर की दवा लिख दो जिससे जल्दी ठीक हो जाए, मरीज अपने निकटतम जानकार के सहयोग से प्राइवेट अस्पतालों तक पहुंचता है।
आज समाज में गर्भवती महिलाओं का सबसे निकटतम और हमदर्द आशा बहू ही होती है आशा बहू अपना स्वार्थ देखकर प्राइवेट और सरकारी में ले जाती है। सरकारी मानदेय जो मिलता है उससे उसका और बच्चों का भरण पोषण संभव नहीं है। जिससे वह प्राइवेट की तरफ ले जाती है ।